दुर्गावती घर की
घर चाहरदीवारी में संघर्ष रत सभी मातृशक्तियो को समर्पित🙏💐🙏
किसी ने चुटकी काटी,तीखे शब्दो के विष बुझे तीर से अंतरमन आहत हुआ
सिधे अंतस को लहूलुहान करता तुम्हारा प्रश्न पीती हो तुम?और हंसकर नैनो के कोरो से अश्रु छिपाते कह दिया सबसे ….हां हरदम …घर के दहलीज मे कैद सिसकते पंखों को…,जो दायरे तोड़ मचलते है नभ छूने को,
उन हर पल मरते आशाओं को , स्वयं के विखंडित सपनों का दंश तिल तिल मौत देती घुटन भरी सांसों को..
कड़वे घूंट मै पी जाती हूं हरदम ..जो न पी पाती हूं मै अक्सर मेरी क्रोधाग्नि,उद्वेग आंदोलित हृदय के गुबार को ..जो बहुधा शब्दो का लश्कारा पहना उतर जाती है कोरे कागज पर.. और बेसुध कर देती है सबको
पं अंजू पांडेय अश्रु