दुमदार दोहे
दुमदार दोहे
बंधन साजन नेह का, बांधे ऐसी डोर।
जादू नज़रों का चले, खींचे तेरी ओर।।
प्रीत के झरने बहते।
आँख में सपने पलते।
भक्ति भाव से बाँधते, प्रभु का मांगे प्यार।
बंधन है ये आस का, खोले मन के द्वार।।
तमस है सारा हरता।
हृदय में शांति रखता।
बंधन धन के मोह का, मोहे है भरपूर।
सही गलत का ज्ञान से, होते हैं सब दूर।।
अक्ल पर पत्थर पड़ते।
रहें सब अक्सर लड़ते।
घड़ी गुलामी की सखी, मन को देती मार।
आजादी है लाजमी, जीवन के दिन चार ।।
हार कर ऐसे जीना
गरल हो जैसे पीना।
सीमा शर्मा ‘अंशु’