Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 May 2023 · 1 min read

*दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आई 【हिंदी गजल/गीतिका】*

दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आई 【हिंदी गजल/गीतिका】

(1)
दुपहरी जेठ की लेकर, सताती गर्मियाँ आईं
पसीना आदमी का यों, बहाती गर्मियाँ आईं
(2)
सुहाना है बहुत ज्यादा, सुबह का शाम का मौसम
मगर लू से दुपहरी में, डराती गर्मियाँ आईं
(3)
करिश्मा एक कुदरत का, है यह तरबूज-खरबूजे
सभी को फल अनोखे यह, खिलाती गर्मियाँ आई
(4)
कहीं शरबत की खुशबू है, कहीं लस्सी की है रौनक
चलन को चाय के फिर भी, चलाती गर्मियाँ आईं
(5)
पहाड़ों पर मई और जून में भी ठंड पड़ती है
वहाँ की सैर करने को, बुलाती गर्मियाँ आईं
(6)
अगर जो बर्फ की चुसनी, नहीं खाई तो क्या खाया
बरफ को सातों रंगों से, सजाती गर्मियाँ आईं
(7)
हुई स्कूल की छुट्टी, चले नानी के घर बच्चे
हँसाती मौज-मस्ती फिर, मनाती गर्मियाँ आईं
————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

330 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

संदेश
संदेश
seema sharma
गाँव सहमा हुआ आया है जीता
गाँव सहमा हुआ आया है जीता
Arun Prasad
आदमी का वजन
आदमी का वजन
पूर्वार्थ
नारी री पीड़
नारी री पीड़
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बच्चे
बच्चे
Shivkumar Bilagrami
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
खोज सत्य की
खोज सत्य की
Dr MusafiR BaithA
अनपढ़ सी
अनपढ़ सी
SHAMA PARVEEN
शाम कहते है
शाम कहते है
Sunil Gupta
" सब्र "
Dr. Kishan tandon kranti
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
Lohit Tamta
टूटते रिश्ते, बनता हुआ लोकतंत्र
टूटते रिश्ते, बनता हुआ लोकतंत्र
Sanjay ' शून्य'
पलकों पे जो ठहरे थे
पलकों पे जो ठहरे थे
Dr fauzia Naseem shad
सिपाही
सिपाही
Neeraj Agarwal
👍
👍
*प्रणय*
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
2806. *पूर्णिका*
2806. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सब भूल गये......
सब भूल गये......
Vishal Prajapati
एक तरफे इश्क़ के आदि लोग,
एक तरफे इश्क़ के आदि लोग,
ओसमणी साहू 'ओश'
परेड में पीछे मुड़ बोलते ही,
परेड में पीछे मुड़ बोलते ही,
नेताम आर सी
वैश्विक जलवायु परिवर्तन और मानव जीवन पर इसका प्रभाव
वैश्विक जलवायु परिवर्तन और मानव जीवन पर इसका प्रभाव
Shyam Sundar Subramanian
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
कविता : संगति और जोश
कविता : संगति और जोश
आर.एस. 'प्रीतम'
जीवन की निरंतरता
जीवन की निरंतरता
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
#नयी गाथा
#नयी गाथा
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
बाल कविता: जंगल का बाज़ार
बाल कविता: जंगल का बाज़ार
Rajesh Kumar Arjun
” कभी – कभी “
” कभी – कभी “
ज्योति
दूर क्षितिज तक जाना है
दूर क्षितिज तक जाना है
Neerja Sharma
भगवान श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र दोनो ही
भगवान श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र दोनो ही
Rj Anand Prajapati
वक्त गुजर जाएगा
वक्त गुजर जाएगा
Deepesh purohit
Loading...