दुनिया
दोषी यहाँ बात करते है अपने अधिकारो की,
निर्दोष को फिक्र है यहाँ खुद को बचाने की।।
उंगलियाँ उठती है यहाँ बेगुनाहो पर,
शाजिस होती है यहाँ गुनहगारों को बचाने की।।
अभी जो झूँठ था अचानक सच बन गया,
सच ने कोशिश में उम्र गुजार दी, खुद को सच बनाने की।
बेशुमार ताक़त है आजकल फरेब के पास,
नेक नियत की कोशिश है कब्र से बाहर आने की।।