दुनिया मुझे जलाती है।
रात दिन अब मुझे रुलाती है।
याद अकसर तेरी सताती है।।
मौत से क्या गिला करूँ यारों।
जिंदगी जब ये आजमाती है।।
चांद भी देखकर लगे जलने।
रुख से परदा वो जब हटाती है।।
जिंदगी बेवफाई करती जब।
मौत हँसकर गले लगाती है।।
ए गजल बात क्या है तुझमें जो।
तेरी खुशबू मुझे लुभाती है।।
अब खड़ा भी यहाँ रहूँ कैसे।
भूख भीतर से तोड़ जाती है।।
दर्द ही दर्द है मेरी किसमत।
दीप दुनिया मुझे जलाती है।।
प्रदीप कुमार