दुनिया तेज़ चली या मुझमे ही कम रफ़्तार थी,
दुनिया तेज़ चली या मुझमे ही कम रफ़्तार थी,
मैं रह गई,छंट गई ,जो खुशियाँ पाने ख़ड़ी कतार थी ll
थोड़ी तू हिम्मत करता तो जुदा होती दास्ताँ,
तू तो कदम बढ़ा न सका, मैं तो बिलकुल तैयार थी ll
सवाल ,क्यूँ ?आयीं बंज़र धरती मेरे हिस्से ,
सबब तू रहा , वरना मेरे हक़ मैं तो बस बहार थी ll
अब तक ज़ख़्म नही भरे मेरे वो ,
घायल हूँ अब तक,तेरे अल्फाज़ो मैं गज़ब की धार थीll
ये तन्हाई चुनी कहाँ तनहा “रत्न”ने ,
तू न आया,मेरे लिए तो बिन तेरे हर महफ़िल बेकार थी ll