दुनिया के डर से
दुनिया के डर से ,चुप बैठोगे कब तक।
और डरायेगी दुनिया, डरोगे जब तक।
क्या है मन में ,जानता है सब कुछ रब
कैसे छुपेंगे गुनाह,जो कर रहा तू अब।
दुनिया का क्या है ,ये कब हुई किसी की
जिसने इसको ठगा ,ये भयी बस उसी की
पाप से डर तू ,छोड़ के सारे गोरखधंधे
सजदे मे रहो, सब रब पे छोड़ तू बंदे
डरना है तो डर बस उस परवरदिगार से
बंदे को जो बख्श देता है सिर्फ प्यार से।
सुरिंदर कौर