‘दुनिया की आदिशक्ति हूँ’ (वीर – रस)
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
ना मुझको अबला समझना
ना समझना तुम नादान।
जीवन जीना मुझे भी आता
वीरांगनाओं के समान।
बहुत पीड़ा सहन कर चुकी
अब ना सहूँगी मैं अपमान।
जब क्रोध मुझे आता है
रुप दुर्गा का धारण करती हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
तुम फिरते हो स्वतंत्र विच्छल
मैं चारदीवारी में बंद क्यों।
तुम्हारे मुख पर हँसी की रेखा
फिर मेरी आँखें नम क्यों।
तुम पाते दुलार जन्म भर
फिर मुझे मिलती नफरत क्यों।
तुम एक घर के कुलदीपक
मैं दो घर सँवारती हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
मुझसे ही तेरा जन्म हुआ
मैं ही तो पोषण करती हूँ।
तेरी नींद व चैन के लिए
रात भर में ही जागा करती हूँ।
बहन बनकर भैया मेरे कह
तुझ पर प्यार लुटाती हूँ।
और पत्नी के रूप में तेरा
जीवन भर साथ निभाती हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
दहेज की लालच की आग में
क्यों मुझे जलाया जाता है।
लघु उम्र में विवाह रचा के
क्यों घर से निकाला जाता है।
कामना की पूर्ति हेतु क्यों
बलि चढ़ाया जाता है।
इन प्रश्नों के उत्तर पाने को
आज मैं आतुर हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
पुत्र जन्म की सूचना आने पर
खूब खुशी मनाई जाती है।
दुनिया से अनजान बेटी क्यों
नाले में बहाई जाती है।
माता के गर्भ में ही क्यों उसकी
हत्या कर दी जाती है।
इस अन्याय व शोषण के विरुद्ध
मैं अब लड़ने को तैयार हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
कान खोल कर सुन लो आज
अरे समाज के ठेकेदार।
स्त्री अपमान के कारण ही
रावण वंश का हुआ विनाश।
मेरे साहस और धैर्य की
तुम ना लो परीक्षा आज।
जब मैं अपने पर आती हूँ
तो महाभारत रचाती चाहती हूँ।
स्त्री हूँ पर निशक्त नहीं हूँ
दुनिया की आदिशक्ति हूँ।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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