दुनियादारी
मिलना जुलना, शादी उत्सव, यारी रिश्तेदारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
प्रेम भाव तो लुप्तप्राय दिखता है संबंधों में
रिश्ते तो अब बचे हुए हैं केवल अनुबंधों में
मतलब तक ही शेष रह गई अब तो सारी यारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
वो भी क्या दिन थे जब मिलकर घंटों बतियाते थे
और महल्ले के सारे घर, अपने से लगते थे
हाय हलो तक शेष रह गई, यारी रिश्तेदारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
पहले सब छुट्टी ले लेकर दौड़े आते थे
और महल्ले वाले मिलकर काम कराते थे
कोई कैशियर बन जाता था तो कोई भंडारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
जबसे बैंकेट हाल हुए हैं, प्रेम नहीं दिखता है
बफ्फेट सिस्टम के, खाने में स्वाद नहीं मिलता है
(धक्का मुक्की भीड़भाड़ में क्या पाएं क्या खाएं
प्लेट सम्हालें या अपने कपड़ों की खैर मनाएं)
प्लेट थामकर खड़े हुए हैं जैसे खड़े भिखारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
जबसे शुरु हुआ है मित्रों चलन लिफाफे का ये
देख हैसियत तय होता है वजन लिफाफे का ये
कहीं हैसियत उनकी हम पर पड़ न जाए भारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनिया दारी
कितने कार्ड बटेंगे, कितने खाना खाएंगे
गिनकर प्लेट कैटरर का वो दाम चुकाएंगे
गणित जोड़कर आवभगत की होती है तैयारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
कहीं कहीं तो मजबूरी में जाना पड़ जाता है
बिन जाए भी बड़ा लिफाफा भिजवाना पड़ता है
ऐसा लगता है हम मानो देते हैं रँगदारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी
साहब के कुत्ते का देखो, जन्मदिवस आया है
प्रीतिभोज का सबको ही आमंत्रण आया है
ओहदे की कीमत वसूलने की पूरी तैयारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी।
कभी कभी कवि सम्मेलन में , कुछ अवसर आते हैं,
इसी लिफाफे के हमको भी, दर्शन हो जाते हैं,
लगता है हम कवि नहीं हैं, हम हैं सिर्फ मदारी,
एक लिफाफे में सिमटी है, सारी दुनियादारी।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद