दुनियादारी
जबतक चोर गए न पकड़े, तबतक सजी साहूकारों सी मंडी।
दिल कहता अब छोड़ बावरे, दुनियादारी हुई पाखंडी।।
चुन के लाये जो गाय सरीखी, निकली है वह भी मरखण्डी।
दिल कहता अब छोड़ बावरे, दुनियादारी हुई पाखंडी।।
दो धारी तलवार चलाते, वह धर्म कर्म के नारों से।
फूट डालते रहते शासक, मज़हब के हथियारों से।।
हानि लाभ देख पाला बदले, राजनीति के मंझें शिखण्डी।
दिल कहता अब छोड़ बावरे, दुनियादारी हुई पाखंडी।।
है प्यार की राह में बिखरे काँटे, मन उचट गया झंकारों से।
बांछित हो गए हम तो उनके, हर चाहत के अधिकारों से।।
चुग प्यार के दाने पक्षी उड़ गए, खा गए खेतो को पगडंडी।
दिल कहता अब छोड़ बावरे, दुनियादारी हुई पाखंडी।।