*दुनियादारी की समझ*
उसकी तारीफ़ों के पुल नहीं बांधता
जो कहता है उस पर भी कभी टोक देता हूं मैं
जो भी करता हूं उसकी ख़ुशी के लिए करता हूं
फिर भी उसे लगता है बहुत बुरा हूं मैं
जाने क्या चाहता है वो मुझसे
समझने में ख़ुद को नाकाम पाता हूं मैं
चलने की कोशिश करता हूं साथ उसके
फिर भी उसे बुरा नज़र आता हूं मैं
कैसे यकीं दिलाऊं, उसे दिल से चाहता हूं मैं
उसकी ख़ुशी में ही ख़ुद को ख़ुश पाता हूं मैं
रूठ जाता है जब वो मुझसे, ख़ुद से भी रूठ जाता हूं मैं
क्या करूं सोचता ही रह जाता हूं मैं
है अनजान वो दुनिया की सच्चाई से
यही मानकर उसे कुछ कहता नहीं हूं मैं
चाहता है मैं कर दूं हर बार वही जो वो कहे
लेकिन भावनाओं में आकर बहता नहीं हूं मैं
सुनता हूं दिल की बातों को भी
मगर सोच समझकर ही करता हूं मैं
मेरे बगैर कैसे रह पाएगा इस ज़ालिम दुनिया में वो
आज भी इस ख़्याल से डरता हूं मैं
है नहीं समझाना आसान उसको
फिर भी कोशिश करता रहता हूं मैं
टिक नहीं पाता कभी वो अपने कहे पर भी
कर पाएगा कैसे जो कहता हूं मैं।