दुनियां
ये दुनियां इतनी छोटी है
कि चलने पर आपस में सिर टकराता है
और कभी इतनी बड़ी हो जाती है
कि भाई भाई को पहचान नहीं पाता है
आखिर कितनी लचीली है ये
जब चाहे अपना आकार बदल लेती है
भाई भाई, बाप बेटा, भाई बहन के
रिश्ते को पलक झपकते मसल देती है
कभी सोचा है
प्राण तो प्राण हैं
महाप्रयाण कर जायेंगे
और इस लचीली दुनियां में
केवल तुम्हारे ध्वंसावशेष रह जाएंगे
तो आओ
ऐसी दुनियां का निर्माण करें
जो न तो छोटी हो और न बड़ी
बस इतनी हो कि
भाई भाई को पहचान सके
रिश्तों को असली आयाम दे सके
और हम कह सकें
ये दुनियां कितनी अच्छी है
ये दुनियां कितनी सच्ची है
़़़़़़़़़़़़ अशोक मिश्र