दुनियां कहे , कहे कहने दो !
, दुनियां कहे , कहे कहने दो !
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शुभ्र चाँदनी श्यामल निशि से,मानो बातें करती है !
मौसम-मौसम की महिमा है,करबट रोज बदलती है!!
चौदह दिन आने में लगते,उतने ही जाने में लगते-
एक-एक दिन ठहर यहाँ-वहाँ,फिर से चलने लगती है!
अर्ध-मास दे पीठ जगत को,धीरे-धीरे श्यामल हो-
नाम अमावस जानी जाती , ऐसा ज्योतिष कहती है!
नही॔ मानता मन तो फिर से,कैद अँधेरे से निकले-
एक-एक पल सुमुख चाँद हित,पूनम नाम सिरजती है!
कुदरत के आँगन में जब तू,खुल कर अठखेली करती-
कभी रेत पर दर्पण बनती,बन कर ओस टपकती है!
विरही तेरे संग-संघाती,पल-पल साथ निभाते हैं-
फर्क नहीं तू श्यामल है या,जग को रौशन करती है !
द्रुम शाखाओं से छन-छन कर,जब तू चित्र बनाती है –
बड़े भाग्यशाली वो मानव, जिनका दु:ख तू हरती है !
चुप रहने का मंत्र कोई यदि सीखे तो तुझ से सीखे-
चुप रह कर भी मन ही मन तू,मन से बातें करती है !
आँखों के अंधो को भी तू ,दर्शन मार्ग कराती है-
कहीं शांति यदि नहीं मिले,उन को शांति सिरजती है !
चल उठ चलो चाँद पर चल कर,हम तुम रहें अकेले ही-
दुनियां कहे कहे कहने दो,दुनियां बहुत फ़ितरती है !
मन में हो संतोष अगर तो,चाँद चाँदनी मिल जाये-
और नहीं तो पूनम भी रो ,बन कर ओस सुबकती है !
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04/01/2024/आशु-चिंतन/स्वरूप दिनकर