दुख निवारण ब्रह्म सरोवर और हम
1 प्रभात कालीन ब्रह्म सरोवर, अजब छटा निराली थी,
ठण्डक मन्दक शीतल पवन, चारो और हरियाली थी।
संत सज्जन करे मनन,करे स्नान हो आत्म संतुष्टि,
देख दृश्य करे कवि कविताई ,कर दृढता हो तृप्ति।।
2 सामने देखा मैने चितकबरे, बादलों को रुककर,
फिर किया महेश्वर को, प्रणाम मैंने झुककर ।
चल रहे थे पथिक ,चिकने पत्थरो पर से झूमकर ,
मैं भी चल रहा था, सभी के साथ थोडा़ -सा फुलकर।।
3 ब्रह्म सरोवर में बत्तखे पानी बहाव में,आनन्द ले रही थी,
देख एक दूसरे को शायद कुछ ,आप बीती कह रही थी।
विरह वेदना से पीड़ित दोबारा, मिलन पर जन्नत जी रही थी,
परअफसोस कुछ बत्तखे अब भी,विरह जीवन जी रही थी।।
4 मंदिरों की घण्टियां कर गूंज, उड़ा रही थी पंछी आकाश में।
रुदन कर्नन्दन कर एक पक्षी पड़ा था, कोई न था पास में,
कातर दृष्टि डाल रोगी कोठी देख रहे थे ,कुछ न था हाथ में।
हम भी अनमने ढंग से चल रहे थे क्योंकि लोग बैठे थे पास में।।
5 ताल पर पैरो से ताल मिलाकर, हम चले मिलन सार होकर,
कुछ पापी भी पाप मुक्त हो रहे थे ,सर में मुंह हाथ धोकर ।
व्यक्तियों के व्यक्ति बनाए जा रहे थे, आए थे कैमरा साथ लेकर, कवि व्यक्ति बनना चाहता था, पर प्रतिकूलता पीछे पड़ी थी हाथ धोकर।।
सतपाल चौहान।