“दु:ख के साये अच्छे थे”
दु:ख के साये अच्छे थे,
जिस वक्त ने तेरा साथ निभाया,
उस सुख की कल्पना व्यर्थ है जीवन में,
जिसने तेरे नयनों की प्यास बढ़ाया।
वो आंखें कितनी व्याकुल होंगी?
जिन्होंने अनगिनत,अनमोल स्वप्न संजोए,
अस्त हो गई ममता की किरण,
जिनके हिस्से स्वप्न अधूरे आए।
वे चित्त कितने मजबूर होंगे,
जिन्होंने जन्म दिया,
पाल-पोस बड़ा किए,
अपने लहू से नन्हीं कलियों को सींचे,
वात्सल्य बीच अपनी खूबसूरत दुनिया खोए।
तड़प रही होगी वो मां,
पाने को अधूरे सुख के साये,
आज भी सामने से भटकती होगी,
थामने को अपने लाल की बाहें।।
मां को समर्पित रचना
वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ युवराज राकेश चौरसिया