दुख की अग्नि
मैं तो हंस कर दुख की अग्नि
पी जांऊगा
किंतु हृदय का क्या होगा
इस तृषित हृदय का क्या होगा ?
मन सागर की द्वंद्व लहरिया
तृष्णा-तट छूकर मुड़ जाए
आस जगे आकाश को छूने
पंख कटा पंछी उड़ जाए
मैं तो थक कर गहरी निंदिया
सो जाऊंगा
किंतु हृदय का क्या होगा
इस पथिक हृदय का क्या होगा ?
ऊषा-निशा दिशा-भ्रम पाले
कई युगों से भटक रही हैं
अरु मन का गंतव्य खोजतीं
नैन पुतरियां मटक रही हैं
व्यथा-कथा मैं अपनी कह
चुप हो जाऊंगा
किंतु हृदय का क्या होगा
इस व्यथित हृदय का क्या होगा ?
एक प्रश्न पर चिह्न कई
हर उत्तर की एक प्रतिक्रिया
घुटी चीख स्तब्ध नयन ने
मुझको केवल ‘मौन’ दिया
समझौतों के मेलों में मैं
खो जाऊंगा
किंतु हृदय का क्या होगा
दिग्भ्रमित हृदय का क्या होगा ?
मैं तो हंस कर दुख की अग्नि
पी जांऊगा
किंतु हृदय का क्या होगा
इस तृषित हृदय का क्या होगा ?