दुआ / musafir baitha
आदमी मूलतः स्वार्थी है, दुनियाभर के सुखों, साधनों, बल वैभवों का स्वामित्व चाहता है। यह उसे छल-छद्म, झूठ-सच, तिकड़म और श्रम से न सधे तो भी चाहिए होता है ! हर हाल में चाहिए होता है ! येन केन प्रकारेण चाहिए होता है !
और, ऐसे ही में उसे ‘हर्रे लगे न फिटकरी रंग चोखा’ करने वाली दुआ/शुभकामना/wish चाहिए होती है। जबकि यह दुआ/शुभकामना/wish निर्वीर्य कल्पना है, एक मूढ़ अवैज्ञानिक धारणा है।