{{{ दुआ मांग कर देखते है }}}
आज फिर से खुद का तमाशा देखते है
साँसे बोझ है, थोड़ा मर कर देखते है
दिल की दीवार का हर कोना टूटा है
क्यों न उसे पत्थर कर के देखते है
मेरा हर आँसू आज घायल है
आँखे चिराग है, उसे बुझा कर देखते है
अंधेरी रात में सिसकियों के साए है
यादों को थोड़ा धूप लगाकर देखते है
और कितना दिलासा दे खुद को हम
ज़ख्मी नींद को, ख्वाबो का मरहम लगा के देखते है
कांटो पे चल कर ही रिस्ता निभाना है तो
तेरे लिए अपनी पलकें बिछा के देखते है
चाहत का मोती लुटा कर भी, चाहत न मिली
आज फिर तुझे दुआ में मांग कर देखते