बड़ी मुद्दत इबादत से पाई है (कविता)
बड़ी मुद्दत इबादत से पाई है
लम्हों की खूश्बू खुशनुमा मंज़र को
छोटा घर है हृदय बडा तुम्हे कहाँ समाऊ
दिल की धरकन मे हमेशा रहती हो तुम
तेरे लिऐ ताजमहल कभी न बनाऊ
आशियाना दे दूं असहाय बिलखते लोगो को
दुआओ से लबी उम्र हो तेरी खुदा से मागू
साथ रहू मे सदा तेरा
बिन सिंदूर मांग देख ना पाऊ
हमसे करती हो प्यार बहुत
एक पल रोते हुऐ देख न पाऊ
दुआओ से लबी उम्र हो तेरी खुदा से मागू
मै बन जाऊ अभिनव जयदेव
तुम शुशीला बन जाओ
वो प्रेम करते थे जितना
मै भी तुम्हे उतना ही चाहू
प्रेम से अगर देव दुआ दिया मुझको
दुआओ से लबी उम्र हो तेरी खुदा से मागू
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य