दुःख के समय कोई सहारा ना होता
दुःख के समय कोई सहारा ना होता,
ना भगवान होते,ना इन्सान होता,
अपने भी अपने को मेहमान कहते,
दोषी भी नहीं आदमीयों की,
जब स्वयं मुख भगवान ने मोड़ा,
फिर इन्सान तो खुदगर्ज होता ही है।
और, दुःख जब गरिबों का हो,
तो वह नाटक होता है,
सायद पैसों के लिए एक बहाना होता,
या फिर तकदीर में सिर्फ लिखा है उनके,
दर्द भरे बिछोने और आंसुओं भरी चादर।
पर, दुःख जब अमीरों का होता,
तब सही मायने में वह तड़प होती,
देख उनकी दशा को,
यह भगवान भी रोता और
इन्सान कि कतार ही लगी रहती।
कहते हैं ईश्वर है सभी का,
फिर यह भेदभाव कैसा,
अमीरों के लिए आंसुओं की धारा
और सम्हालने के लिए हाथ।
गरीब बेचारा खुद रोए,
खुद अपनी आंखें पोंछे।
उसकी दिनता दिखावा और
मनोरंजन एक्सप्रेस होता।
दुःख के समय में कोई सहारा ना होता।