दुःख की घड़ी
(दुःख कि घड़ी)
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चिंता को दूर कर
भय के मायाजाल से बाहर निकल।
ये दुःख की घड़ी है प्यारे
जल्दी ही तेज़ हवा की भांति ये भी जाएगा टल।
यूँ बैठ न दुःखसागर में डूबकर
कोशिश जीत की सौ सौ बार कर।
ये दुःख की घड़ी है प्यारे
पार जाना है तुझको बस धैर्यनाव में बैठकर।
हिला सके न कोई तेरे मजबूत इरादे
मन मे इतना जलता फौलाद भर।
टकरा कर चट्टाने भी चूर चूर हो जाएं
इस क़दर ख़ुद को तैयार कर।
रख कर आँखों मे नमी
न अंदर से ख़ुद को कमज़ोर कर
ये दुःख की घड़ी है प्यारे
निकल कर बाहर इससे खड़ी इक़ नई मिसाल कर।
कवि-वि के विराज़