दुःख और मेरे मध्य ,असंख्य लोग हैं
दुःख और मेरे मध्य ,असंख्य लोग हैं
लोग, जो बोलना जानते हैं ,सुनना नहीं।।
कितने अभागे हैं वो लोग ,जो अपना दुःख
कह ना सके ,दुःख कहने से आधा
और किसी के सुन लेने से ,पूरा ख़त्म हो जाता है।।
जीवित रहने के लिए ,जितनी आवश्यक थी वायु
उससे बिल्कुल कम नहीं ,किसी से अपना
दुःख कह देने की सहूलियत।।
दुनिया में सबसे छोटा था ,मेरा दुःख
तुम्हारे हाथों की गर्माहट पा कर ,आँखों से बहता चला आया।।
दुखों के बह जाते ही ,आँखों ने छोड़ दी
अपनी सारी लवणता ,खारापन आँखों में नहीं दुखों में था।।