दीवार पसंद नहीं
किसी को है इज़हार पसंद नहीं
किसी को है इन्कार पसंद नहीं
चाहे मेरी तजवीज़ तुम कुबूल न करो
लेकिन मुझे इसरार पसंद नहीं
ज़रूरत के हाथों मजबूर हो जाते हैं लोग
वरना किसी को भी इंतजार पसंद नहीं
बांट दे जो दो हिस्सों में आंगन को
हमे दरमियां ऐसी दीवार पसंद नहीं
हार जीत की कोई परवाह नहीं है
लेकिन हमें हौसलों की हार पसंद नहीं
खूबियों से मोहब्बत है खामियों से नफरत
उन्हें गुलाब पसंद है खार पसंद नहीं
तहज़ीब ही कुछ ऐसी मिली है इस मिट्टी से
हमें ये जात मज़हब की तकरार पसंद नहीं
पुरनूर जब होगा ‘अर्श’ तो जी भर के देखेंगे
हमें अधूरे चांद का दीदार पसंद नहीं