दीवारों के भी कान होते हैं
**** दीवारों के भी कान होतज हैं ****
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सुना है दीवारों के भी कान होते है
जिन्दगी के रास्ते भी सुनसान होते है
सजी मजलिसो में खूब रौनक बहारां हो
भरी महफिल में कई दिल अंजान होते हैंं
मेले भरते यहाँ पर भरे बाजारों में
बसी बस्तीं में भी खाली मकान होते हैं
नजर आते हैंं अक्सर खुश हसीन चेहरे
अंदर से यारो रो रहे इन्सान होते हैं
खुले में जो भी दिखे वही बिक जाता है
अकेले रहें वो पड़ा सामान होते हैं
अकेलेपन में इंसा घुट घुट के मरता है
सजी अंजुमन में भी बंद जुबान होते हैं
दुनिया में दरियादिली के चर्चें होते हैं
संकीर्ण सोच में दबे नादान होते हैं
जो सोचते दिल से अमलीजामा न होता
बिन सोचे समझे कई परवान होते हैंं
सुखविंद्र कहता है जो वो कर नहीं पाता
अनकहे किस्से भी बने दास्तान होते हैं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राऐ वाली (कैथल)