– दीवारों के कान –
– दीवारों के कान –
पहले होती थी बातो को गोपनीय रखने के लिए दीवारे,
दीवारों से रहता था एक दूसरे का मान,
रहता था मान मर्यादा का ध्यान,
सोचने विचारने का सदा रहता था सबको रहता था भान,
आजकल छीन गई गोपनीयता,
छीन गई गोपनीय बातो का मान,
मान मर्यादा का नही रहता है ध्यान,
सोचने विचारने का नही रहता है किसी को भी कोई भान,
क्योंकि पहले होती थी दीवारे,
आजकल हो गए है दीवारों के भी कान,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क 7742016184-