दीवाने
मुक्तक -दिवाने
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दिवाने को रुलाते हो,
दिवाने को सताती हो।
प्रिये मुझ पर मिटी हूँ तुम,
भले तुम कह नहीं सकती।
मगर छुपके छुपाके गीत,
मेरा ही गुनगुनाती हो।
प्रिये यौवन भले तेरा,
सुखद है चाँद के जैसा।
मगर है चाँद में भी दाग,
प्रशंसा क्या करूँ तेरा।
नहीं हैं जो निगाहों में,
वहीं चेहरा दिखाती हो।
मगर छुपके छुपाके गीत,
मेरा ही गुनगुनाती हो।
महकता है बदन तेरा,
मुझे चंदन बनाता है।
सुरीली है मधुर बोली,
मुझे पावन बनाता है।
मगर छुपके छुपाके गीत,
मेरा ही गुनगुनाती हो।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”✍️