दीवाने थे
ना काँटों से दुश्मनी थी ना फूलों के दीवाने थे
कुछ गम थे नसीब की तहरीरों में जो हमें निभाने थे
खिलता गुलशन ग़रूर कर बैठा नाजुक से फूलों पर
वो भूल गया अभी तो ख़िज़ाँ के मौसम भी आने थे
अब के बरस इस बारिश को दर्द के निशां मिटाने थे
किसी के ज़ख्म सहलाने किसी के आँसू छिपाने थे
आगाज़-ए-मुहब्बत अंजाम-ए-नफरत हो चला था
ये किसी के किस्से थे और अब किसी को सुनाने थे
वो तोहफ़े वो तस्वीरें वो चंद कागज़ के टुकड़े
किसी की जागीर थे वो तो किसी के राज़ पुराने थे
किसी की चाहत में खुद को न जाने कहाँ छोड़ आए
हमें तो दिल में रहना था कौन से महल बनाने थे
सागर