दीवाना – सा लगता है
मैं पागल बनी फिरती हूं उसके पीछे – पीछे,
वो भी मुझे मेरा दीवाना – सा लगता है।
मैं करती हूं इश्क उससे उसे मालूम है
उसके दिल में भी मेरा कुछ ठिकाना – सा लगता है।।
उसके साथ रहती हूं ना जाने मैं किस हक से
बिना हक के भी उसका साथ मुझे परवाना – सा लगता है।।
सांसे लेती हूं मैं जब – जब
उसकी सासों का मेरे बदन में आना – जाना – सा लगता है।।
उसके साथ हर पल खास है मेरे लिए
हर दिन जैसे सुहाना- सा लगता है।
नियाज़ में कुछ तस्वीरे उभरती है उसके साथ रहने पर
पिछले जन्म का जैसे राब्ता जाना – पहचाना- सा लगता है।।
इश्क करके उससे, जैसे खुद को पा लिए
उनका बार – बार मिलना हमसे, जैसे बहाना – सा लगता है।
और यकीन नही होता हमें इस हकीकत पर
आज भी ये इश्क हमें अफसाना – सा लगता है।।