दीवाना मुझ सा नहीं
** दीवाना मुझ सा नहीं **
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दीवाना कोई मुझ सा नहीं,
नज़राना कोई तुझ सा नहीं।
सुलगी चिंगारी कंचन बदन में,
अंगारों सा तन बुझता नहीं।
संध्या श्यामल सी है हो चली,
कोरा कागज मन भरता नहीं।
फैली यौवन की ख़ुश्बू यहाँ,
फूलों सा दिल है खिलता नहीं।
मनसीरत मारा – मारा फ़िरा,
कीड़ा अनुरागी मरता नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)