दीवानगी
अरे !किसी से सच्चे,
दिल से प्रीत लगाओगे।
तभी तो दीवानेपन का,
अर्थ समझ पाओगे ।
चांद की दीवानगी चांदनी तक ,
चकोर की दीवानगी चांद तक ।
सच्ची मोहब्बत की दीवानगी,
मरते दम तक ।
मोर की चाहत बादल तक,
पपीहे की आरजू बारिश ,
की बूंद तक ।
और आशिकी की मोहब्बत की,
दीवानगी तो परवानगी तक।
आंखों से शुरू होती है,
यह दीवानगी ।
धीरे धीरे पूरे शरीर में,
समा जाती है ।
और पूरी तब होती है,
जब किसी परवाने को ,
समा मिल जाती है।