दीप-लहू
” दीप- लहू ”
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तब तू बहना मेरे शोणित,
जब देश मेरा पुकार करे |
कतरा-कतरा तू बह जाना ,
अगर वतन-अरि हुंकार भरे ||
मातृ-भूमि के लिए न जाने,
है कितनों ने स्व-शीश दिया |
शोणित के अंतिम कतरे से,
यह हिन्दुस्तान सिंचित किया ||
तू न मुड़ना, तनिक भी पीछे,
मत करना तू ! कोई शंका |
रण क्षेत्र में मुझे ले जाना ,
बजा देना क्रांति का डंका ||
तुझको आज कसम है मेरी ,
नित्य कर्ज चुका स्वदेश का |
“दीप” कवि का ये रक्तिम लहू ,
गौरव बने मेरे देश का………
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— डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”
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