इसलिए कठिनाईयों का खल मुझे न छल रहा।
दीप बनकर मैं, घनी- काली निशा में जल रहा।
ज्ञानमय पावन सुपथ सह जागरण बन चल रहा।
आप सब के नेह ने, मुझको दिया है हौसला,
इसलिए कठिनाईयों का खल मुझे न छल रहा।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता