दीप जलाते हो
क्यों आस के दिप जलाते हो
तुम क्यों सपनो में आते हो?
एक बूँद की आस नही जब
थक जाते है ढूंढ -ढूंढ जल ,
तपता है मरुस्थल सा जीवन
तब तुम मधु बरसाते हो ।
तुम क्यों सपनो में आते हो
क्यों आस के दीप जलाते हो?
मै बनकर धरा तुमको निहारु
तुम अनंत आकाश से छाए हो
जब जब मुझको प्यास जगी
तुम बादल बन बरस जाते हो
तुम क्यों सपनो में आते हो
क्यों आस के दिप जलाते हो?