“दीप जलाओ प्यार का”
दीप जलाओ प्यार का,
सद्भभावना, सदाचार का,
न हो किसी का अन भला,
न साथ किसी के अत्याचार।
वक्त के शिकंजे में ,
हर कोई बंधा है यहां,
दिन-रात सबका एक है,
कोई शेष नहीं रहा यहां।
पाप से दूर रहोगे तो,
पाप नहीं होगा कभी,
सीने पर हाथ रखकर चलोगे ,
धोखा नहीं होगा कभी।
इतने भी मगरुर न हो जाएं,
अपनो को पहचान न पाएं,
कितने होंगे ऐसे भी जिन्हें,
तंज लगती होगी मेरी कविताएं।
सम्बन्धों का दीवार न ढहने पाए,
रिश्तों में दरार न पड़ने पाए,
इतना निश्छल हो प्रीति हमारे,
कि विश्वास की दर न घटने पाए।।
स्वरचित काव्य- राकेश चौरसिया