दीप जलते रहें – दीपक नीलपदम्
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत
आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।
दीप ऐसे जलें, न अन्धेरा रहे
शाम हो न कभी, बस सवेरा रहे,
रौशनी की कड़ी से कड़ी सब जुड़ें
रौशनी प्यार की बिखरी हो हर तरफ ।
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत
आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।
दीप ऐसे जलें सूख आँसू चलें,
आशा उम्मीद की चंद साँसें चलें,
आशंका न हो उस तरफ होगा क्या,
उस तरफ चल पड़ें, हम रहें बेधड़क ।
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत
आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।
दीप ऐसे जलें कोई तो हँस पड़े,
साथ में हो खड़े वक़्त उल्टा पड़े,
दें दिलासा कि हम साथ में है तेरे,
चल पड़ो तुम उधर, जाये तेरी सड़क ।
दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत
आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “