दीप की व्यथा
दीप खामोश चिताओं सा जलकर ख़ाक हो गया ,
मगर कुछ वादों पर वो रात भर टिमटिमाता रहा ,
देखी उसने उजाले से अंधेरे की दुनिया चारो-पहर ,
तन्हाई से लिपट अश्क़ में भी इश्क गुनगुनाता रहा..!१!
मैं जूझता सोचता रहा कि वो कितना बदनसीब है ,
उसके अंधेरे हिस्से में,कभी उजाला क्यो नही आया ,
रात भर सम्मुख ही बैठा रहा जुगनुओ का जमघट..
मग़र तारों से सजी महफ़िल खुद को अकेला पाया..!२!
आभास था ,उसे जिसने अंधेरों को रोशन किया ,
जलाने वाले ही कल सुबह-सुबह ही उसे बुझाएंगे ,
क्या ख़ता हुई कम्पन्न से मन ही मन तड़पता रहा..
जब शाम इठलाते आयेगी क्या उसे फिर जलायेंगे..!३!
बेबसी देखो उसे दर्द देने वाला ही उसका हमदर्द है,
उसके लिए जिंदगी का सफर मानो धुंध का गर्द है,
नफ़रतों में जलता जमाना आख़िर क्या चाहता है..?
क्या उसे जलाकर खुद हँसी आशियाना चाहता है..!४!
वो छोड़ न पाया अपने जलने की बुरी लतो को ,
उसे संभालने वाला अब कौन कब कहाँ आएगा ,
आंधियों का जोर कहता है,वो सहज बुझ जाएगा..
निराश होकर आस में जलते प्यासा ही मर जाएगा..!५!
अब दुनिया के स्वार्थ की रौनको से ऊब गया मैं ,
हर कश्तियाँ अश्रु सैलाब में उलझी नजर आती है,
हवा का झोंका आता है,तो सहम जाता हूँ मैं भी..
भरोसा करो, मानो सांसों की डोर टूट ही जाती है..!६!
जाने क्यों कोई भटका पतंगा भी इधर नही आता ,
तम्मनाओ की मफहिल का कोई परिंदा नही आता,
ताख पर बैठा वो रात भर बस इंतजार करता रहा..
मगर बेचैन नेत्रों में कोई ख्वाब सुनहरा नही आता..!७!
उसने आबाद किये होंगे कई वीरानी बस्ती शायद ,
हर घड़ी उसके आंसू उसका दामन भिगोने लगे है ,
बेबसी तेरी इनायत इतनी बेरहम है क्यों आजकल
गम के मरुथल में कुहासे के मौसम भी छाने लगे है..!८!
किसी को भी उम्र भर ये चेहरा अच्छा नही लगता ,
कब्र में बैठकर मौत का इंतजार अच्छा नही लगता ,
खतरा है,रोने में भी,ये दरिया ही समंदर बन जायेंगे
बिना पतवार अरमानों के शहर में हम डूब जाएंगे..!९!
जिंदगी की हर खुशियों में मानो गैर हाजिरी हो गयी ..
एक सांस की आस बची थी वो भी आखिरी हो गयी ..