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26 Oct 2022 · 1 min read

दीपावली (कुछ दोहे)

दीपावली (कुछ दोहे)
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
(1)
चंदा नभ का घट गया , लिए शून्य आकार
जिसने सब कुछ खो दिया,उसकी जय जयकार
(2)
अक्टूबर के वश नहीं , मावस का त्यौहार
कार्तिक आकर नापता, चंदा का आकार
(3)
कुछ सूरज के नाम हैं ,कुछ चंदा के नाम
सिर्फ अहोई अष्टमी , तारों का व्यायाम
(4)
चंदा बेचारा घटा , दीवाली की शाम
चंदे का खाता बढ़ा , दीवाली के नाम
(5)
बिजली की झालर दिखी,हुआ बल्ब का राज
मिट्टी का दीपक कहे, मैं बस रस्म-रिवाज
(6)
तेल जला तो रह गया, दीपक मिट्टी मोल
जैसे आत्मा के बिना, मुर्दा तन का खोल
(7)
दीवाली पर यूँ हुई , अंधकार की हार
दीपों ने खाली किया ,अपना कोषागार
(8)
बल्बों की हारी लड़ी, जीते दीप महान
दीपों के भीतर छिपी, मिट्टी की पहचान
(9)
चाँद नहीं तो क्या हुआ,उजियारी थी रात
चंदा के बदले सजी , तारों की बारात
(10)
पीछे-पीछे जो चले , उनका बंटाढ़ार
छोटी दीवाली हुई,चौदस का त्यौहार
“”””””””””””””””‘””””””””””””””””””””””””””
रचयिता ःरवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 5451

Language: Hindi
358 Views
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