(दीवाली गीत)
आँगन में रंगोली अपने,द्वारे बंदनवार लगायें
दीपमालिका से दीपों का, आओ हम त्यौहार मनायें
फुलझड़ियों की झिलमिल से तो,हम सबके मन खिल जाते हैं।
शोर पटाखों का पर सुनकर, सहम-सहम से दिल जाते हैं।
धुआँ प्रदूषित करते इनका, सारा वातावरण हमारा
आतिशबाजी त्याग चलो हम, अपना पर्यावरण बचायें।
दीपमालिका से दीपों का, आओ हम त्यौहार मनायें।
जिस पावन माटी का करते, भाल लगाकर अर्चन-वंदन।
उससे ही सामान बनाकर,करते हैं कुछ जीवनयापन।
माटी की ले दीपक, बर्तन, रोजगार इन सबको दे दें।
मने दिवाली इनके घर भी,सारे सपने सच हो जायें।
दीपमालिका से दीपों का, आओ हम त्यौहार मनायें
लेकर हम सामान विदेशी, रोशन करते हैं अपने घर।
ये सस्ते तो मिल जाते पर, गुणवत्ता में होते कमतर।
आओ लें संकल्प सभी हम, माल खरीदें सिर्फ़ स्वदेशी
देशी सामानों से ही अब, हमअपना घर द्वार सजायें।
दीपमालिका से दीपों का, आओ हम त्यौहार मनायें।
जलती बिजली की लड़ियों पर, कीट-पतंगे आ जाते हैं।
लेकिन जलते दीपक के वे,पास भी नहीं जा पाते हैं।
माटी की सौंधी खुशबू से,आओ जग को सुरभित कर दें।
बाती और तेल-घी लेकर, माटी के ही दीप जलायें।
दीपमालिका के दीपों से, आओ हम त्यौहार मनायें।
रोशन कर लें अपने मन को, क्रोद्ध जलाकर दीवाली में।
और सफ़ल ये जीवन कर लें,बैर मिटाकर दीवाली में।
प्रेम भरें मन के दीपक में, डालें सद्भावों की बाती।
हम नफ़रत के अँधियारे को, आओ जड़ से दूर भगायें।
दीपमालिका से दीपों का, आओ हम त्यौहार मनायें।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद