दीपक
विषय-दीपक
माटी सानी प्रेम से, दिया दीप आकार।
बाती ले सत्कर्म की, किया रूप साकार।।
अवधपुरी दीपक जले, घर लौटे श्री राम।
अँधकार लज्जित हुआ, दीपोत्सव की शाम।।
जगमग दीपक जल रहा, तले स्वयं अँधियार ।
परहित की रख भावना, करता जग उजियार।।
दीपक समता सूर्य से, करता सकल जहान।
आँधी में जलता रहे, करे नहीं अभिमान।।
घोर अमावस दीप जल, करता तम विष पान।
चंदा, सूरज गगन से,देख इसे हैरान।।
एक दीप विश्वास का, सदा जले मन द्वार।
अंतस को भर ज्ञान से, तजता मनोविकार।।
परहित सीखो दीप से, करे देह का दान।
अपने दुख को भूल कर, रोशन करे जहान।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)