*दीपक सा मन* ( 22 of 25 )
दीपक सा मन
दिल में पलते और, दिमाग में टहलते हैं
हिम्मत के कदमों से, मेरे सपने चलते हैं …
दुख – दर्द – कष्टों की, सीमा तोड़ कर ,
रंगों के काफिले संग, आगे बढ़ते हैं …
ना जाने ये सपने , हैं किस माटी के
जब लोगों ने तोड़ा ,और निखरते हैं …
मन भी मेरा ज़िद्दी सा, बड़ा अनोखा है ,
दीपक सा रोशन होता है,जब दिन ढ़लते हैं
हर लम्हा है कीमती ,समय खजाना है ,
क्यूँ हम लम्हे- लम्हे से ,रोज झगड़ते हैं …
– क्षमा ऊर्मिला