दीपउत्सव
रात के तले तलित में सितारे,
धरती पर जले दीपों के सहारे।
हर आँगन में उजियारा आया,
अंधेरे ने सिर अपना झुकाया।
मिट्टी के दीप मुस्काते हैं,
जगमगाते, उम्मीदें जगाते हैं।
जगमग रौशनी की इस शृंखला में,
हर दिल की खुशियाँ शामिल हैं।
फूलों की महक से महका आँगन,
प्रेम का दीप हर घर से जला है ।
मिटें बैर और कटुता सब मन से,
प्रेम और विश्वास के दीप जले हर तन में।
सजती हैं चौखटें रंगोंली से,
गूँजती हैं हँसी की ठीठोलियाँ।
दीपों का ये हुलास कहता है—
हर दिल में हो प्यार की गहराई,
हर राह हो रौशनी से भरी,
यही है दीपों का उत्सव सार!
— श्रीहर्ष