दीद की आस
वो पहली नज़र का दीदार
उसके बारे में जाननें को दिल बेताब
कौन है कहाँ से आये , कहाँ रहते है
पुरे दिन यहीं ख्याल रहा था
उसकी मुस्कुराहट देखनें के बाद ये हाल रहा था।
रख लिये बसा कर दिल में उसके सारे निशां
कुछ अलग ही लग रही थी उस दिन से रंग में फिज़ा
अब तो बस उसका ही ख्याल अक्सर रहनें लगा था
कैसे करु बात उनसें खुद से ही कहनें लगा था।
मौका ए दस्तुर कब मिले यही सोच में रहता
फिर से दिख जाये वो उसके छोर में खडा था
मिले वो, दिखे वो , खुशी का ठीकाना न रहा था
देख लिया जी भर के उस दिन
वहीं सबसे हसीन फसाना था
बात करना , मिलने को कहना ,दीद की आस करना इसमें ही दिन गुजर जाता है
दिख जाते है वो जब ,दिन बन जाता है।
खुशी का न कोई छोर रहता है
दिल और निगाहें बस उसकी ओर रहता है।
उसके दोस्तों में कुछ यूंह खास होना है
फुरसत के पलों में मुझें ही पास होना है।