दीदार चाँद का…
दीदार चाँद का…
रात जब ढलने लगी, दीदार हुआ चाँद का
साँस जब थमने लगी, दीदार हुआ चाँद का
यूँ तो गम पहले से ही, कम न थे जिंदगी में
ये दिल भी अब मेरा, बीमार हुआ चाँद का
निर्जला ही बैठी रही, मैं तो उसकी राह में
न जानूँ कहाँ रोज़ा, इफ़्तार हुआ चाँद का
सबका मन बहलाकर, मेरी गली वो आया
मुरझाया-मुरझाया, रुख़्सार हुआ चाँद का
नख सा लघ्वाकार था, देखा उसे जब मैंने
रफ़्ता-रफ़्ता इतना, विस्तार हुआ चाँद का
चाह कर भी मैं उससे, तन्हा मिल न पाऊँ
सदा सितारों से लदा, दरबार हुआ चाँद का
कर रहा है पैरवी, देखो तो उसकी ओर से
आसमां भी आज तो, मुख़्तार हुआ चाँद का
रूपमुग्धा मैं बनी, सुध-बुध निज बिसराई
मन- उदधि में मेरे, अवतार हुआ चाँद का
चित्रलिखित-सी इकटक, निहारा करें उसे
कितना आँखों को, इंतजार हुआ चाँद का
रात पूनम की आई, छिटकी हर सूं चाँदनी
मिलीं सोलह कलाएँ, श्रंगार हुआ चाँद का
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मृगतृषा” से