दीदार -ऐ-यार (ग़ज़ल)
खबर सुनी जब से उनके आने की हमने ,
खोल दिए दिल के दरवाज़े सभी हमने ,
सब गुनाहों को साफ़ कर अपने आंसुओं से,
कालीन बिछा दिए अपने आँचल के हमने .
झाड़कर गर्द फानूस-ऐ-इल्म की रोशन किया,
चिरागों से मन के अंधेरों को मिटाया हमने.
कुछ प्याले भरे आंसुओं से ,और कुछ आहों से ,
अपने दर्दों गम का दस्ताखन बिछाया हमने,
मुहोबत के धागे मैं पिरोकर हसरतों के फूल ,
बड़ी शिद्दत से उनके लिए हार बनाया हमने,
अपनी जिंदगी की नाव को उनके हवाले करने को ,
अपना माझी जो उन्हें बनाया था हमने .
मगर हाय ! तकदीर को मंज़ूर नहीं था यह दीदार ,
अपनी बेकरार रूह को बस किसी तरह समझाया हमने.