दिशा
दिग्भ्रमित सी हैं दिशाएं काल्पनिक राह है
जाएं किस ओर पथिक भटकन चहुंओर है
मतलबी दुनिया वाले बातें हैं उनकी बड़ी-बड़ी
पर सच्चा दिशा -ज्ञानी मिलता किस ओर है
ढूंढते-ढूंढते उस पथिक को थक गया रहगुजर
दिख रहा अमूर्त सा कोई चित्र
मानो कोई उलझा रेखाचित्र
किसी ब्लैक होल में सबकुछ समाता हुआ है
जैसे लगता छल है लोकतंत्र में आजादी।