कब आओगे मनहर बसंत
दिशा दिशा में है कोहरे का पहरा,
निशदिन रहता चौकसी गहरा
धूप बिचारी दिखा न पाए मुखरा
,सुनने वाला कौन है दुखरा,
है जब सूरज नजर बंद,
हो कैसे शीतलहर का अंत,
कब आओगे मनहर बसंत,
कुंठित घट में घुटक रही कली,
रस पान कर निकला न अलि
चंचल तितली भी गई छली,
सन्नाटा छा गया गली गली,
निशदिन जोहे उपवन पंत,
हो कैसे शीतलहर का अंत
कब आओगे मनहर बसंत,
पिक- पपीहा राग विखेरे कैसे,
काक स्वर क्या न भाए ऐसे,
दिन ढल जाए जैसे तैस,
दिन भी होता सिहड़न जैसे,
धरणी की गति हो गई मंद,
हो कैसे शीतलहरका अंत।
कब आओगे मनहर बसंत।
बोरशी ताप रहे हैं जन जन,
चारपाई से चिपके वृद्ध जन,
बच्चा बच्ची करे किलोल,
थक गई माँ कह-कह कर बोल,
क्यों होते हैं विद्यालय बंद ,
हो कैसे शीतलहर का अंत ,
कब आओगे मनहर बसंत।
है क्या शीतलहर दोष बताना,
उमा है यह खेल पुराना,
न होगा शीत लहर आना
गेहूँ बिना क्या खाए खाना,
प्रकृति का यही राग छंद
हो कैसे शीतलहर का अंत,
कब आओगे मनहर बसंत।
उमा झा