दिव्य नर्मदा
दिव्य नर्मदा
(माँ नर्मदा प्रार्थना )
सुशील शर्मा
अशुतोषी माँ नर्मदा मुझे ऐसा ज्ञान दे दो।
सर्व पाप विनिर्मुक्तयो का शुभ वरदान दे दो।
मनुज अब घिर गया है अति के अतिचार में।
विषम व्यवहारी हो चुका है अहम के व्यापार में।
दिग्भ्रमित सा घूमता है बुद्धि से लाचार है।
ढूँढ़ता है शांति सुख व्यथित सा बेकार है।
विपत में तेरा सहारा माँ ऐसा अंतर्ज्ञान दे दो।
सर्व पाप विनिर्मुक्तयो का शुभ वरदान दे दो।
विषम अंतर्दाह से जल रहा सारा जगत।
अनाचारों में लगा जन है क्षोभित व्यथित।
लूट कर तेरे किनारे लोग तुझ को पूजते हैं।
त्रस्त जीवन बना कर पाप से फिर झुझते हैं।
अमृत पयी धारा माँ नर्मदा भक्तों को स्वाभिमान दे दो।
सर्व पाप विनिर्मुक्तयो का शुभ वरदान दे दो।
अनहद नाद करती बढ़ती हैं तुम्हारी जल शलाकाएँ।
आदि कल्पों से सुशोभित अविचल उत्तुंग पताकाएँ।
दुर्गम पथों को लाँघ तुम हो अविराम अविजित।
शमित करती अभिशाप सबके उत्ताल तरंगित।
धन्य धारा माँ नर्मदा मुक्ति का संधान दे दो।
सर्व पाप विनिर्मुक्तयो का शुभ वरदान दे दो।