*दिव्य दृष्टि*
दिव्य दृष्टि ब्रह्म देन श्रेष्ठ ज्ञान संपदा।
सर्व मंगला चरित्र ध्यान योगिनी सदा।
पार्थ दृष्टि कृष्ण भक्ति का कृपा प्रसाद है।
भूत का भविष्य आज का विशेष नाद है।
ईश्वरीय वृष्टि योग प्रेम सृष्टि भव्यता।
पारलोक धर्म लोक कर्म लोक दिव्यता।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।