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15 Sep 2019 · 1 min read

दिव्यमाला। 24*

गतांक से आगे……

दिव्य कृष्ण लीला ….अंक 24
*****************************
मिट्टी की महिमा
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हे कान्हा यह जग जाने ,कुछ रज गुण लीला करनी थी।

इसीलिये तो छोड़ सत्व को,मुंह मे माटी भरनी थी।

सत गुण रज गुण तम गुण तीनो,मिलकर बात सनवर्नी थी।

जिस गुण का जो मिल जाये,उसकी नाव उतरनी थी।

क्या समझे मधु इन बातों का,
केवल ज्ञान.. कहाँ सम्भव।
हे पूर्ण कला के अवतारी तेरा यशगान…कहाँ सम्भव.. ?47
********************************
तीन वर्ष के कान्ह हो गए ,संग नंद जी के जाते।

जंगल जंगल घूम घाम कर,नन्द की धेनु चराते।

अब तो आदत लगी दूध की,और दही भी खाने की।

नहीं मिला जो घर के अंदर ,साथियो संग चुराने की।

जय हो माखन चोर कन्हैया, तेरा गुणगान… कहाँ सम्भव।।।
हे पूर्ण कला के अवतारी ,
तेरा गुणगान…….कहाँ संभव? 48
*
क्रमशः अगले अंक में
*
कलम घिसाई
©®
कॉपी राइट
9414764891

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 200 Views
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