दिवास्वप्न
हम में हर कोई एक सपना लिए यथार्थ की त्रासदी भोग रहा है ,
किंचित उस स्वप्न टूटने की आशंका मात्र से सिहर उठता है ,
वह उसे अपने मानस पटल पर संजोए रखना
चाहता है ,
क्योंकि वह स्वप्न उसका एकमात्र संबल और
प्रेरणा स्रोत है ,
वह उसे दिन-प्रतिदिन आघातों को सहन करने की शक्ति देता है ,
और जीवन संघर्ष में कर्मवीर की शूरता की
सूक्ति देता है ,
निराशा और संताप के क्षण में धैर्य और आशा की किरण देता है ,
वह जानता है कि स्वप्न के भंग होने पर आशा के
धागे में पिरोए गए अभिलाषाओं और आकांक्षाओं के मोती टूट कर बिखर जायेंगे ,
और फिर छाएगा गहन अंधकार जिस पर उसका असहाय एकाकीपन उसके अस्तित्व को चुनौती देगा ,
तब उसे वर्तमान को भोगना असंभव होगा ,
तभी तो वह अपने सपने की परिणति में ,
अपना आत्मसम्मान् ,संस्कार ,आचार,
निष्ठा और ईमान तक दांव पर पर लगा देना चाहता है,
शायद इस भ्रम में कि वह अपना सपना साकार कर पाएगा ,
इस तथ्य से बेखबर कि वह भी कभी मकड़ी की तरह अपने ही बुने जाल मे उलझ सकता है ,
और जिससे निकलने के लिए जितना छटपटायेगा और उलझता जायेगा ,
क्योंकि इस जाल के धागे उसने स्वयं बनाए हैं,
जिनका ओर व छोर जाल बुनने की चेष्टा करते हुए
भूल चुका है ,
और वह कब का त्रिशंकु बन चुका है !